हे केशव नित खड़ा मैं युद्ध क्षेत्र में, मार्ग मेरा प्रशस्त करो, 
वैचारिक भंवर में, उलझी हुई डगर में, 
मेरे पथ की विजयी बागडोर अपने हाथ धरो। 
हे केशव मार्ग मेरा प्रशस्त करो।

क्यों हो क्षुब्द मेरा मन जो तुम सा प्रबुद्ध हो संग । 
अभिमान हो सम्मान हो, हो शंखनाद ऐसा जिसमें विजय गान हो।
नित खड़ा मैं युद्ध क्षेत्र में, मार्ग मेरा प्रशस्त करो…..

न हो जहां भय का अंधकार, न हो संकीर्ण ऊंची दीवार 
ज्ञान प्रकाश से लग जाये भव सागर पार 
हर बार की तरह फिर दो साथ इस बार, 
हे केशव मार्ग मेरा प्रशस्त करो …….
मार्ग मेरा प्रशस्त करो….

रचना : निवेदिता तिवारी

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