स्वामी विवेकानंद आज भारत के अनुभूति , इसकी अभिव्यक्ति और इसकी आत्मीय चेतना के राष्ट्रीय प्रतिक बनकर सारे भारत वासियो के दिलो-दिमाग में बसे हुए है। उत्तरी हिमालय से दक्षिण के कन्याकुमारी और पश्चिम के कच्छ से पूरब के अरुणाचल तक फैले इस विशाल राष्ट्र भारत के प्रतिक स्वामीजी को शब्दों में नापकर उनके बारे में कुछ लिखने की चेष्टा मात्र ही सूर्य को दीपक दिखाने जैसा कार्य है !

किन्तु फिर भी , उन्हें जानने , समझने हेतु पुस्तकों से बेहतर कोई माध्यम फ़िलहाल नहीं है। और हमारे सौभाग्य से ऐसी कुछ पुस्तके अवश्य मौजूद है , जो उन्हें समझने में हमारी सहायक हो सकती है। वैसे तो अंग्रेजी भाषा में ही अधिकांश मुख्यधारा वाली सारी पुस्तके लिखी गयी है, हमारा मुख्य प्रयास यहाँ मुख्यतः हिंदी भाषा में ही अनुवाद की गयी अथवा मूलतः लिखी गयी पुस्तकों पर लेख केंद्रित किया है ।

हमने इन्ही कुछ पुस्तकों सूचि नीचे साझा करने प्रयास किया है। साथ में उन पुस्तकों कुछ अंश, प्रकाशकों के मनोभाव, एवं यथासंभव,उपलब्धता के अनुसार उनके डाउनलोडिंग लिंक भी देने का प्रयास किया है।

आशा है इस सूचि का आप अवश्य लाभ उठाएंगे :

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हम इस सूचि को दो हिस्सों में बाटेंगे :

# स्वामीजी के विचारप्रवाह, उपदेशो से उनको समझने हेतु उन्ही द्वारा लिखे गए पुस्तके

# उनके जीवन-चरित्र समझने और जानने के लिए दूसरे लेखकों द्वारा लिखी गयी पुस्तके

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#स्वामीजी के विचारप्रवाह, उपदेशो से उनको समझने हेतु उन्ही द्वारा लिखे गए पुस्तके :

१) मेरा जीवन तथा ध्येय :

स्वामीजी ने २७ जनवरी १९०० में अमेरिका के पेसिडिना, कैलिफ़ोर्निया स्टेट में मौजूद शेक्सपियर के समक्ष दिया था | इस पुस्तक के संपादक के शब्दों में अगर कहे तो “इसमें भारत के दुखी मानवो वेदना से विह्वल उस महात्मा के ह्रदय का बोलता हुआ चित्र हैं। इसमें प्रस्तुत हैं उसका उपचार जिसके आधार पर मातृभूमि को पुनः अपने अतीत यश पर वे ले जाना चाहते थे ”

इस पुस्तक कुछ अंश आप यहाँ पढ़ सकते है : [1]

डाउनलोड लिंक : https://ia902903.us.archive.org/32/items/Mera.Jivan.Tatha.Dhyeya.by.Swami.Vivekananda.djvu/Mera.Jivan.Tatha.Dhyeya.by.Swami.Vivekananda.pdf

२) ज्ञानयोग :

वेदान्त और ज्ञानयोग पर विभिन्न कालखंडो में स्वामीजी द्वारा दिए गए व्याखानो और उपदेशो का सकलन इस पुस्तक में है। ज्ञान योग स्वंज्ञान अर्थात् स्वयं का जानकारी प्राप्त करने को कहते है। ये अपनी और अपनी परिवेश को अनुभव करने के माध्यम से समझना है। एक मनुष्य और एक समाज, दोनों के आत्मोथान में ज्ञान योग किस प्रकार सहायक हो सकता है, यह इस पुस्तक में स्वामीजी ने दर्शाया है| ज्ञान के माध्यम से ईश्वरीय स्वरूप का ज्ञान, वास्तविक सत्य का ज्ञान ही ज्ञानयोग का लक्ष्य है। स्वामी विवेकानंद द्वारा रचित ज्ञानयोग वेदांत के अंतर्गत सत्यों को बताकर वेदांत के सार रूप में प्रस्तुत है।

एक रूप में ज्ञानयोगी व्यक्ति ज्ञान द्वारा ईश्वरप्राप्ति मार्ग में प्रेरित होता है। स्वामी विवेकानंद द्वारा रचित ज्ञानयोग में मायावाद,मनुष्य का यथार्थ व प्रकृत स्वरूप,माया और मुक्ति,ब्रह्म और जगत,अंतर्जगत,बहिर्जगत,बहुतत्व में एकत्व,ब्रह्म दर्शन,आत्मा का मुक्त स्वभाव आदि नामों से उनके द्वारा दिये भाषणों का संकलन है।

इस पुस्तक का एक अंश आप यहाँ पढ़ सकते है :[2]

डाउनलोड लिंक :

https://ia801608.us.archive.org/13/items/in.ernet.dli.2015.308067/2015.308067.Gyan-yog.pdf

३) भक्ति-योग :

इस पुस्तक में स्वामीजी ने भक्ति के अनेक पथ, साधनाये, मार्ग , अलग-अलग धर्म तथा पंथोकी विवेचना के आधार पर बताये है।

इस पुस्तक कुछ अंश आप यहाँ पढ़ सकते हैं:[3]

डाउनलोड लिंक :

https://ia802902.us.archive.org/21/items/in.ernet.dli.2015.319686/2015.319686.Bhakti-Yog.pdf

४) कर्मयोग :

कर्मयोग स्वामीजी द्वारा लिखे गए सारे पुस्तकों में से सबसे ज्यादा प्रसिद्द पुस्तक है। इस पुस्तक में उनके द्वारा कर्मयोग पर १८९५-१८९६ के कालखंड में दिए गए व्याख्यानों का संकलन है।

कर्म योग के आदर्श को प्रस्तुत करते हुए स्वामीजी कहते हैं, “आदर्श पुरुष तो वे हैं, जो परम शान्ति एवं निस्तब्धता के बीच भी तीव्र कर्म का, तथा प्रबल कर्मशीलता के बीच भी मरुस्थल की शान्ति एवं निस्तब्धता का अनुभव करते हैं। उन्होंने संयम का रहस्य जान लिया है–अपने ऊपर विजय प्राप्त कर चुके हैं। किसी बड़े शहर की भरी हुई सड़कों के बीच से जाने पर भी उनका मन उसी प्रकार शान्त रहता है, मानो वे किसी नि:शब्द गुफा में हों, और फिर भी उनका मन सारे समय कर्म में तीव्र रूप से लगा रहता है। यही कर्मयोग का आदर्श है, और यदि तुमने यह प्राप्त कर लिया है, तो तुम्हें वास्तव में कर्म का रहस्य ज्ञात हो गया।

इसका कुछ अंश आप यहाँ पढ़ सकते है :[4]

डाउनलोड लिंक: https://ia801604.us.archive.org/1/items/in.ernet.dli.2015.400888/2015.400888.Karmyog-Sanskaran-13.pdf

५) वर्तमान भारत :

इसी पुस्तक के प्रस्तावना के शब्दों सुंदरता से इस प्रकार किया गया है , उसीके शब्द हमे यहाँ देखेंगे: “वर्तमान भारत इस पुस्तक में स्वामी विवेकानंद ने भारतवर्ष के प्राचीन गौरव का सूंदर चित्रांकन किया हैइसके साथ साथ स्वामीजी ने उन बातो को भी सम्मुख रखा है, जिसके कारण इस राष्ट्र की उन्नति के बजाय अवनति होते आयी हैइस पुस्तक में स्वामीजी ने बड़े आकर्षक ढंग से भारतवर्ष के राष्ट्रीय ध्येयो की विवेचना की हैं तथा इस बात पर जोर दिया है की यदि भारतवासियो को अपने राष्ट्र का पुनरुत्थान सचमुच वांछित है , तो उन्हें यह यत्न चाहिए की उनमे निस्वार्थ सेवाभाव तथा आदर्श ऐसा चारित्र्य आ जाये !” इस पुस्तक का एक अंश :[5]

डाउनलोड लिंक :

https://ia601600.us.archive.org/31/items/in.ernet.dli.2015.307440/2015.307440.Vartaman-Bharat.pdf

# उनके जीवन-चरित्र समझने और जानने के लिए दूसरे लेखकों द्वारा लिखी गयी पुस्तके:

१) तोड़ो कारा तोड़ो – नरेंद्र कोहली

कोहलीजी द्वारा लिखी गयी तोड़ो-कारा-तोड़ो, यह उपन्यास शैली में लिखी गयी,छह पुस्तक-खंडो में विभाजित एक मर्मस्पर्शी ,भावभीनी, ओजस्वी महारचना है ! प्रकाशक के शब्दों में अगर हम इन आठो भागो की रचना संक्षिप्त में देखे तो :

“ यह बृहत उपन्यास का पहला खंड पुस्तक – निर्माण स्वामीजी के व्यक्तित्व के निर्माण के विभिन्न आयामों तथा चरणों की कथा कहता है। इसका क्षेत्र उनके जन्म से लेकर तो रामकृष्ण परमहंस तथा जगन्माता भवतारिणी के सम्मुख निर्द्वन्द आत्मसमर्पण तक की घटनाओ पर आधृत है।

दूसरा खंड पुस्तक –साधना अपने गुरु के चरणों में बैठकर की गयी साधना और गुरु के देहत्याग के पश्चात उनके आदेश अनुसार, अपने गुरुभाइयों को एक मठ में संगठित करने की कथा है।

तीसरा खंड पुस्तक –परिव्राजक में उनके एक अज्ञात सन्यासी के रूप में कलकत्ता से द्वारिका तक के भ्रमण की कथा है।

चौथे खंड पुस्तक- निर्देश में द्वारका में सागर तात पर बैठ कर स्वामी विवेकानंद ने भारत माता की दुर्दशा पर आंसू बहाये थे। वहा से एक नया संकल्प लेकर विभ्भिन्न राज्य और रजवाड़ो से होते हुए वे कन्याकुमारी पहुंचे , जहा तीन दिन ध्यान में रहने के उपरांत उन्होंने समाधी में जगदम्बा और भारत माता के दर्शन एक साथ किये थे। उसके बाद वे मद्रास पहुंचे और वह उन्होंने अमेरिका के शिकागो में आयोजित विश्व धर्म संसद में हिस्सा लेनेका निर्णय लिया। इस पुस्तक में यहाँ तक का विवरण है।

पांचवा खंड पुस्तक- सन्देश स्वामीजी जो सन्देश सारे संसार को देना चाहते थे ,वह इस खंड में घनीभूत रूप में चित्रित हुआ हैं। इस पुस्तक में चित्रित घटनाये १८९४ के अंत से लेकर १८९५ के अंत तक चलती है। ये सारी घटनाये अमेरिका में घटित है। इस काल में स्वामीजी एक भारतीय सन्यासी के रूप में अपने अमेरिकी शिष्यों को न केवल बिना कोई शुल्क लिए भारतीय पद्धति से अध्यात्म पढ़ा और सीखा रहे थे,बल्कि अमेरिका में वेदांत का प्रचार करने हेतु अमेरिकी सन्यासी भी तैयार कर रहे थे। इसे हम अमेरिका में अपने बल और संकल्प द्वारा स्वामीजी द्वारा किया गया आध्यात्मिक युद्ध भी कह सकते है।

छठा और अंतिम खंड पुस्तक- प्रसार में मुख्य रूप से एक और वैश्विक होने की कथा है ,और दूसरी और उस आंदोलन का अंतर्राष्ट्रीय होने का चित्रण !”

यहाँ आप इस पुस्तक का एक अंश पढ़ सकते है:[6]

डाउनलोड लिंक :

https://ia902907.us.archive.org/18/items/in.ernet.dli.2015.273630/2015.273630.Todo-Kara.pdf

२ ) श्री श्री रामकृष्ण कथामृत :

नरेंद्रनाथ नामक युवा का स्वामी विवेकानंद में परिवर्तन कराने में जिस महापुरुष का सबसे बड़ा हाथ था , वे थे स्वामी विवेकानंद के गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस ! और बिना रामकृष्ण जी को समझे ,स्वामी विवेकानंद को समझना अधूरा प्रयास होगा। अतः यह पुस्तक भी इस कार्य में अतिशय सहायक है।

स्वामी विवेकानंद जी के मन में अपने गुरु की जो छवि थी उसका वर्णन वे अक्सर इस प्रकार किया करते थे:“वेदरूपी अनादि-अनन्त सागर के मंथन में जिस अमृत की प्राप्ति हुई है, जिसमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश आदि देवताओं ने अपना-अपना ओझ ढाला है और जो लीला मानव अवतारों के जीवन-रसायन के मिश्रण से और भी अधिक सारवान् हो गया है, उसी अमृत के पूर्णकुम्भस्वरूप भगवान श्री रामकृष्ण जीवों के उद्धार के लिये लीला द्वारा धराधाम पर अवतीर्ण हुए हैं।”

ऐसे श्री रामकृष्ण की जीवनी उनके ही करीबी शिष्य महेंद्रनाथ गुप्ता द्वारा उन्हीके सानिध्य में लिखी गयी थी। अतःएव इस पुस्तक की महत्ता और बढ़ जाती है ! इसे अवश्य पढ़े ।

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इन पुस्तकों के अलावा भी रामकृष्ण मठ बेलूर और नागपुर द्वारा असंख्य पुस्तके स्वामीजी, जीवन, उपदेश, विचारो, अनुभवों पर प्रकाशित की गयी है । आप उनके वेबसाइट पर जाकर वहा से भी और किताबे चुनकर उनका वाचन कर सकते है ।

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सन्दर्भ और स्त्रोत:

[1]:https://ia902903.us.archive.org/32/items/Mera.Jivan.Tatha.Dhyeya.by.Swami.Vivekananda.djvu/Mera.Jivan.Tatha.Dhyeya.by.Swami.Vivekananda.pdf

[2]:https://ia801608.us.archive.org/13/items/in.ernet.dli.2015.308067/2015.308067.Gyan-yog.pdf

[3]:https://ia802902.us.archive.org/21/items/in.ernet.dli.2015.319686/2015.319686.Bhakti-Yog.pdf

[4]:https://ia801604.us.archive.org/1/items/in.ernet.dli.2015.400888/2015.400888.Karmyog-Sanskaran-13.pdf

[5]:https://ia601600.us.archive.org/31/items/in.ernet.dli.2015.307440/2015.307440.Vartaman-Bharat.pdf

[6]:https://ia902907.us.archive.org/18/items/in.ernet.dli.2015.273630/2015.273630.Todo-Kara.pdf