हिंदी दिवस के इस पावन अवसर पर, शब्दों की माला से बुनी गईं प्रेरणादायक और हृदयस्पर्शी कविताएँ आपकी प्रतीक्षा कर रही हैं। ये कविताएँ न सिर्फ हिंदी भाषा के प्रति आपके प्रेम को और गहरा करेंगी, बल्कि आपके मन में देशभक्ति की भावना को भी जगाएंगी। आइए, इन कविताओं के माध्यम से हिंदी दिवस के इस खास दिन को और भी यादगार बनाएँ।
कविता उन विषयों में से एक है जो अक्सर एक सनकी या महत्वहीन विषय के रूप में खारिज कर दिया कर दिया जाता हैI असलियत में यह किसी भी उम्र में अध्ययन करने के लिए एक अत्यंत शक्तिशाली औजार है तथा यह एक महत्वपूर्ण कला हैI कविता यह समझने और समझाने का एक तरीका है कि भाषा और प्रतीक प्रणाली कैसे काम करती है I यह भावनाओं की एक सही अभिव्यक्ति है जिसके द्वारा भावनाओं की गहराई को जता पाना यदि दिखा पाना संभव होता है, तथा दुनिया के बारे में सुंदरता की भावना को उचित रूप से अभिव्यक्त किया जा सकता हैI महान कविता/ काव्य में किसी भी व्यक्ति का जीवन बदलने की क्षमता होती हैI
जिन व्यक्तियों ने जीवन में कभी कविता नहीं पड़ी, वे किसी कविता के पेज को खोल कर देखें तो अचानक से खुद को आश्चर्य, चमत्कार, अत्यंत सुख या दुख, डर या अन्य विस्मयकारी भावनाओं को मात्र एक पेज में लिखी कविता से महसूस कर सकते हैं I
एक कविता जनमानस को दिए गए विचार की ओर रोमांचित कर सकती है, कविता या लोकगीत स्थानीय समुदायों को जोड़कर रखने का एक बहुत ही पुराना और कारगर साधन है भारत में कविताएं प्राचीन काल से गाई जाती हैं जाती हैंI
इसी प्रकार हिंदी-काव्य के विभिन्न मनोभावों को दर्शाते कुछ अनमोल उदाहरण प्रस्तुत हैं:-
#1. जयशंकर प्रसाद
हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती
स्वयंप्रभा समुज्वला स्वतंत्रता पुकारती
अमर्त्य वीर पुत्र हो दृढ़-प्रतिज्ञ सोच लो
प्रशस्त पुण्य पंथ हैं - बढ़े चलो बढ़े चलो ॥
असंख्य कीर्ति-रश्मियाँ विकीर्ण दिव्य दाह-सी
सपूत मातृभूमि के रुको न शूर साहसी
अराति सैन्य सिंधु में सुबाड़वाग्नि से जलो
प्रवीर हो जयी बनो - बढ़े चलो बढ़े चलो
#2. पुष्यमित्र उपाध्याय
छोड़ो आस अब शस्त्र उठा लो,
स्वयं ही अपनी लाज बचा लो।
पासे दिखाए जब हस्ता शकुनि,
मस्तक सब झुक जाएंगे।
सुनो द्रोपदी शस्त्र उठा लो,
अब गोविंद न आएंगे।
कब तक सहारा मांगोगी तुम,
बिके हुए अखबारों से,?
केसी रक्षा माँग रहीं तुम,
दुःशासन की सरकार से?
स्वयं जो लज्जा हीन बैठे,
वे क्या लाज बचाएंगे?
सुनो द्रोपदी शस्त्र उठा लो,
अब गोविंद न आएंगे।
हैं द्रोपदी!
द्वापरयुग में,
पतियों ने शस्त्र उठाये थे।
इस कलयुग में हैं न कोई तेरा,
तुझे स्वयं ही शस्त्र उठाने हैं।
अब राम नहीं आएंगे,
पर रावण तो अब भी आएगा।
अब कृष्ण नहीं आएंगे,
पर दुर्योधन तो अब भी आएगा।
सुनो द्रोपदी शस्त्र उठा लो,
अब गोविंद न आएंगे ।।
#3. मैथिलीशरण गुप्त
कुछ काम करो, कुछ काम करो
जग में रह कर कुछ नाम करो
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो
कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो, न निराश करो मन को
संभलो कि सुयोग न जाय चला
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला
समझो जग को न निरा सपना
पथ आप प्रशस्त करो अपना
अखिलेश्वर है अवलंबन को
नर हो, न निराश करो मन को
जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहाँ
फिर जा सकता वह सत्त्व कहाँ
तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो
उठके अमरत्व विधान करो
दवरूप रहो भव कानन को
नर हो न निराश करो मन को
निज गौरव का नित ज्ञान रहे
हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे
मरणोंत्तर गुंजित गान रहे
सब जाय अभी पर मान रहे
कुछ हो न तज़ो निज साधन को
नर हो, न निराश करो मन को
प्रभु ने तुमको दान किए
सब वांछित वस्तु विधान किए
तुम प्राप्त करो उनको न अहो
फिर है यह किसका दोष कहो
समझो न अलभ्य किसी धन को
नर हो, न निराश करो मन को
किस गौरव के तुम योग्य नहीं
कब कौन तुम्हें सुख भोग्य नहीं
जान हो तुम भी जगदीश्वर के
सब है जिसके अपने घर के
फिर दुर्लभ क्या उसके जन को
नर हो, न निराश करो मन को
करके विधि वाद न खेद करो
निज लक्ष्य निरन्तर भेद करो
बनता बस उद्यम ही विधि है
मिलती जिससे सुख की निधि है
समझो धिक् निष्क्रिय जीवन को
नर हो, न निराश करो मन को
कुछ काम करो, कुछ काम करो
#4. दुष्यन्त कुमार
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,
सारी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।
#5. शिवमंगल सिंह सुमन
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार
आज सिन्धु ने विष उगला है
लहरों का यौवन मचला है
आज ह्रदय में और सिन्धु में
साथ उठा है ज्वार
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार
लहरों के स्वर में कुछ बोलो
इस अंधड में साहस तोलो
कभी-कभी मिलता जीवन में
तूफानों का प्यार
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार
यह असीम, निज सीमा जाने
सागर भी तो यह पहचाने
मिट्टी के पुतले मानव ने
कभी ना मानी हार
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार
सागर की अपनी क्षमता है
पर माँझी भी कब थकता है
जब तक साँसों में स्पन्दन है
उसका हाथ नहीं रुकता है
इसके ही बल पर कर डाले
सातों सागर पार
तूफानों की ओर घुमा दो नाविक निज पतवार ।।
#6. सोहन लाल द्विवेदी
लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है,
चढ़ती दीवारों पर, सौ बार फिसलती है।
मन का विश्वास रगों में साहस भरता है,
चढ़कर गिरना, गिरकर चढ़ना न अखरता है।
आख़िर उसकी मेहनत बेकार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
डुबकियां सिंधु में गोताखोर लगाता है,
जा जा कर खाली हाथ लौटकर आता है।
मिलते नहीं सहज ही मोती गहरे पानी में,
बढ़ता दुगना उत्साह इसी हैरानी में।
मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो,
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो।
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम,
संघर्ष का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम।
कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
#7. पीयूष मिश्रा
आरम्भ है प्रचंड
बोले मस्तकों के झुंड
आज जंग की घड़ी की तुम गुहार दो,
आन बान शान
या कि जान का हो दान
आज इक धनुष के बाण पे उतार दो।
आरम्भ है प्रचंड…
मन करे सो प्राण दे
जो मन करे सो प्राण ले
वही तो एक सर्वशक्तिमान है,
कृष्ण की पुकार है
ये भागवत का सार है
कि युद्ध ही तो वीर का प्रमाण है,
कौरवों की भीड़ हो
या पांडवों का नीड़ हो
जो लड़ सका है वो ही तो महान है।
जीत की हवस नहीं
किसी पे कोई वश नहीं
क्या जिन्दगी है ठोकरों पे मार दो,
मौत अंत है नहीं
तो मौत से भी क्यों डरें
ये जा के आसमान में दहाड़ दो।
आरम्भ है प्रचंड…
वो दया का भाव
या कि शौर्य का चुनाव
या कि हार का वो घाव, तुम ये सोच लो,
या कि पूरे भाल पे
जला रहे विजय का लाल
लाल यह गुलाल, तुम ये सोच लो,
रंग केसरी हो
या मृदंग केसरी हो
या कि केसरी हो ताल, तुम ये सोच लो।
जिस कवि की कल्पना में
जिंदगी हो प्रेम गीत
उस कवि को आज तुम नकार दो,
भीगती मसों में आज
फूलती रगों में आज
आग की लपट का तुम बघार दो।