आयुर्वेद, सदियों पुरानी भारतीय चिकित्सा पद्धति है, जो स्वास्थ्य और कल्याण के लिए एक समग्र दृष्टिकोण प्रदान करती है।

आयुर्वेद के विशाल ज्ञान के भंडार में, वाग्भट के ग्रंथों का विशिष्ट स्थान है। वाग्भट एक प्रसिद्ध आयुर्वेदिक चिकित्सक और विद्वान थे, जिन्होंने आयुर्वेद पर दो महत्वपूर्ण ग्रंथों, ‘अष्टांग हृदयम’ और ‘अष्टांग संग्रह’ की रचना की। ये ग्रंथ आयुर्वेद का अध्ययन करने वाले छात्रों और चिकित्सकों के लिए आवश्यक अध्ययन सामग्री हैं। इस लेख में, हम वाग्भट द्वारा रचित आयुर्वेदिक ग्रंथों की हिंदी उपलब्धता और उनके महत्व पर चर्चा करेंगे।

वाग्भट: एक महान आयुर्वेदिक विद्वान

वाग्भट का जीवन काल लगभग सातवीं शताब्दी ईस्वी माना जाता है। उनका जन्म सिंधु नदी के तट पर स्थित एक क्षेत्र में हुआ था।  उनके पिता, सिम्हगुप्त, भी एक प्रसिद्ध आयुर्वेदिक चिकित्सक थे। वाग्भट ने अपने पिता से आयुर्वेद की प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की और बाद में पूरे भारत में यात्रा कर के और अधिक ज्ञान अर्जित किया। उन्होंने चरक संहिता और सुश्रुत संहिता जैसे पहले के आयुर्वेदिक ग्रंथों का गहन अध्ययन किया। अपने व्यापक ज्ञान और अनुभव के आधार पर, वाग्भट ने संस्कृत भाषा में आयुर्वेद के अपने दो महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखे।

  • अष्टांग हृदयम्
  • अष्टांग संग्रह

अष्टांग हृदयम्

अष्टांग हृदयम् वाग्भट का सबसे प्रसिद्ध और प्रभावशाली ग्रंथ है। आयुर्वेद के आठ अंगों – काय चिकित्सा (सामान्य चिकित्सा), बाल चिकित्सा (बाल रोग), ग्रह चिकित्सा (मनोरोग), उर्ध्वांग चिकित्सा (नेत्र, कान, नाक, गले के रोग), शल्य चिकित्सा (शल्य चिकित्सा), दंष्ट्र चिकित्सा (विष विज्ञान), जरा चिकित्सा (रसायन या कायाकल्प चिकित्सा), और वृष चिकित्सा (वाजीकरण चिकित्सा) को इस ग्रंथ में व्यापक रूप से शामिल किया गया है।

अष्टांग हृदयम् को छह खंडों में विभाजित किया गया है: सूत्रस्थान, निदानस्थान, शरीरस्थान, चिकित्सास्थान, कल्पस्थान, और उत्तरस्थान। यह विभिन्न रोगों के निदान और उपचार, शरीर रचना विज्ञान, शरीर विज्ञान, व्यक्तिगत स्वच्छता, आहार, जीवन शैली, औषधीय जड़ी-बूटियों के उपयोग और सर्जिकल प्रक्रियाओं के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करता है। इस ग्रंथ को श्लोक रूप में लिखा गया है जो याद रखने में आसान है। अष्टांग हृदयम् की भाषा सरल और स्पष्ट है, जिससे यह आयुर्वेद के छात्रों के लिए एक उत्कृष्ट पाठ्यपुस्तक बन जाती है।

अष्टांग हृदय मूल रूप, चौखंबा प्रकाशन वाराणसी द्वारा प्रकाशित किया गया है। नीचे लिखे हुए अन्य ग्रंथ अष्टांग हृदयम विभिन्न विद्वानों द्वारा की गई व्याख्यान हैं। इसकी विभिन्न विद्वानों द्वाराकी गई व्याख्यायें नीचे दी गई सूची में हैं।

अष्टांग संग्रह

अष्टांग संग्रह को अष्टांग हृदयम् का संक्षिप्त रूप माना जाता है। हालांकि, यह अष्टांग हृदयम् में शामिल विषयों को समान रूप से विस्तार से प्रस्तुत करता है। अष्टांग संग्रह का महत्व इस तथ्य में निहित है कि यह आयुर्वेद के सिद्धांतों और प्रथाओं को अधिक संक्षिप्त और सुलभ तरीके से प्रस्तुत करता है।

वाग्भट के ग्रंथों के हिंदी अनुवाद आयुर्वेद के ज्ञान को आम लोगों तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये अनुवाद न केवल आयुर्वेद को अधिक सुलभ बनाते हैं, बल्कि इस प्राचीन चिकित्सा पद्धति की गहरी समझ को भी बढ़ावा देते हैं। यदि आप आयुर्वेद के बारे में अधिक जानने में रुचि रखते हैं, तो वाग्भट के कार्यों का हिंदी में अध्ययन करना ज्ञान का एक समृद्ध स्रोत प्रदान करेगा।

हालांकि किसी विश्वसनीय प्रकाशन से अष्टांग संग्रह का मूल रूप पानी में हम असमर्थ रहे, हमें अत्रि देव गुप्ता द्वारा लिखित अष्टांग संग्रह की हिंदी व्याख्या सर्वोचित जान पड़ी, क्योंकि इसमें मूल संस्कृत भाग भी यथारूप में है। इस पुस्तक में हिंदी व्याख्या को आप बोनस के रूप में मान सकते हैं।

क्या पड़ें – मूल रूप या व्याख्या?

हालांकि आप चाहे तो अष्टांग हृदय मूल रूप पुस्तक पढ़ सकते हैं, जो कि संस्कृत में है। हमारी यह सलाह होगी आप विभिन्न विद्वानों द्वारा लिखे गए टीका तथा व्याख्याओं को पढ़ें। यह कई वाचकों का अनुभव है कि वेदों को समझने के लिए, उन पर लिखे गए टीका एवं भाष्य अत्यंत उपयोगी है। या यह भी कहा जा सकता है कि क्लिष्ट संस्कृत में लिखे गए वेदों को समझना एक दुष्कर कार्य है, इसी प्रकार अष्टांग हृदयम को भली बातें समझने में उस पर हिंदी भाषा में की गई टीका तथा व्याख्यायें बहुत उपयोगी हो सकती हैं।

वाग्भट के ग्रंथों के हिंदी अनुवाद एवं व्याख्या

वाग्भट के ग्रंथ मूल रूप से संस्कृत में लिखे गए थे। सदियों से, इन ग्रंथों का हिंदी सहित विभिन्न भारतीय भाषाओं में अनुवाद एवं व्याख्या की गई है। हिंदी अनुवादों की उपलब्धता ने आयुर्वेद को जन-जन तक पहुंचाने और उन लोगों के लिए सुलभ बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है जो संस्कृत से परिचित नहीं हैं।

वाग्भट के ग्रंथों के हिंदी अनुवादों के कई लाभ हैं जैसे कि, व्यापक पहुंच, बेहतर समझ, आयुर्वेद का प्रचार, शिक्षण और सीखने में सहायता, एवं अनुसंधान को बढ़ावा देना

लेखकों द्वारा उनके ग्रंथों पर लिखी गई कई महत्वपूर्ण पुस्तकें भी हैं। चलिए, इन प्रमुख कृतियों को जानते हैं:

#1. अष्टांगहृदयम – वागभट-विरचित (हिंदी) – काशीनाथ शास्त्री

इस पुस्तक में काशीनाथ शास्त्री ने वागभट द्वारा रचित ‘अष्टांगहृदयम’ का अनुवाद और टीका किया है। यह पुस्तक आयुर्वेद के महत्वपूर्ण सिद्धांतों को समझने में मदद करती है। इसमें आयुर्वेद के महत्वपूर्ण सिद्धांत, सूत्रस्थान और मौलिक विषयों को विस्तार से वर्णन किया गया है।

#2. रोगी स्वयं चिकित्सक (अष्टांगहृदयम आधारित 2 खंड) – राजीव दीक्षित

इसे अष्टांग हृदयम की सबसे सरल तथा व्यवहारिक व्याख्या कहा जा सकता है। ज्ञात हो कि स्वर्गीय राजीव दीक्षित उच्च श्रेणी के विद्वान तथा आई.आई.टी. से पढ़े हुए थे। उन्होंने राष्ट्रभक्ति तथा उत्तम स्वास्थ्य के लिए उत्कृष्ट प्रयास कर अपना जीवन समर्पित कर दिया था। उन्होंने आयुर्वेदिक शब्दावली को अपने स्वयं के अनुभव ज्ञान के आधार पर एक सहज भाषा में समझाने का प्रयास किया है, अतः यह आसानी से पठनीय है।इस पुस्तक-सेट में राजीव दीक्षित ने ‘अष्टांग हृदयम’ के आधार पर रोगी को अपनी चिकित्सा में सहायक होने वाली जानकारी प्रदान की है। यह पुस्तक आपको अष्टांग हृदयम के मूल सिद्धांतों पर आधारित रोगों के स्वयं चिकित्सा प्रणाली के बारे में जानकारी प्रदान करती है।

#3. अष्टांगहृदयम – आचार्य बालकृष्ण

आचार्य बालकृष्ण द्वारा लिखी गई तथा दिव्य प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक में ‘अष्टांगहृदयम’ को अपने विस्तृत अनुभव के साथ सरल हिंदी में समझाने के लिए प्रस्तुत किया गया है। साथ ही यह वाग्भटजी के अष्टांगहृदयम का हिंदी अनुवाद प्रस्तुत करती है।

#4. श्रीमद्वाग्भट का अष्टांग हृदयम – डॉ. ब्रह्मानंद त्रिपाठी

इस पुस्तक में डॉ. ब्रह्मानंद त्रिपाठी ने वागभट के ‘अष्टांग हृदयम’ का विस्तृत अध्ययन किया है और उसकी व्याख्या की है। इस पुस्तक में आपको वाग्भट के “अष्टांगहृदयम” का मूल ग्रंथ मिलेगा।

#5. अष्टांग हृदयम (सूत्रस्थान) एवं आयुर्वेद के मौलिक सिद्धांत- डॉ. सैलजा श्रीवास्तव

डॉ. सैलजा श्रीवास्तव ने इस पुस्तक में ‘आस्तांग हृदयम’ के सूत्रस्थान का अनुवाद और मौलिक सिद्धांतों की महत्वपूर्ण बातें प्रस्तुत की हैं।

#6. अष्टांग संग्रह हिंदी टीका सहित (2 खंड)- कविराज अत्रिदेव गुप्त

इस सेट में कविराज अत्रिदेव गुप्त ने अष्टांग संग्रह का हिंदी टीका सहित प्रस्तुत किया है, जिससे आयुर्वेद के मुद्दों को समझने में मदद मिलती है।

#7. अष्टांग हृदयम – आचार्य वैद्य ताराचंद शर्मा

इस पुस्तक में आपको अष्टांगहृदयम का हिंदी अनुवाद मिलेगा।

#8. वाग्भट प्रवेशिका – डॉ. रामेश्वर लाल, डॉ. संकर लाल बुरड़कर

यह पुस्तक उच्चतर स्तर की परीक्षाओं के लिए उपयोगी है जैसे कि UG/PG/UPSC/AIAPGET/PHD/SPSC आदि।

#9. अष्टांगहृदय (दामोदर कृत संकेतमंजरी टीका एवं संकेतमंजरी की अनंतसुंदरी हिंदी टीका सहित (2 भाग) – वैद्य मनींद्र कुमार व्यास

इसमें वैद्य मनींद्र कुमार व्यास ने ‘अष्टांगहृदय’ के दामोदर कृत संकेतमंजरी टीका एवं संकेतमंजरी की अनंतसुंदरी हिंदी टीका सहित प्रस्तुत किया है।

#10. अष्टांगहृदय (सुत्रस्थान) एवं मौलिक सिद्दान्त – संस्कृत टेक्स्ट विस्तारित हिंदी टीका – अनंतराम शर्मा और डॉ. दीपक यादव प्रेमचंद

यह पुस्तक ‘अष्टांगहृदय’ का सुत्रस्थान और मौलिक सिद्दांत को संस्कृत मूल टेक्स्ट के साथ हिंदी टिप्पणी, नोट्स, और अपेंडिक्स के साथ प्रस्तुत करती है। इस पुस्तक के लेखक प्रोफेसर अनंत राम शर्मा और संपादित और संशोधित करने वाले डॉ. दीपक यादव प्रेमचंद ने आयुर्वेद के इस महत्वपूर्ण ग्रंथ को समझाने के लिए एक मौलिक स्रोत प्रदान किया है।

‘अष्टांगहृदय (सुत्रस्थान) एवं मौलिक सिद्दान्त’ का मुख्य उद्देश्य पाठकों को आयुर्वेद के इस महत्वपूर्ण ग्रंथ को सरलता से समझने में मदद करना है।

सारांश

इस लेख ने आपको वाग्भट के आयुर्वेदिक विचार और उनके सुशिक्षित अनुयायियों के योगदान के प्रति एक नए दृष्टिकोण से परिचित कराया है। आशा है कि यह आपको स्वस्थ जीवन की राह में मार्गदर्शित करेगा।